योग का उद्धेश्य हमारे जीवन का समग्र विकास करना है, या इसे ऐसे कह सकते है कि जीवन का सर्वांगीण विकास करना। सर्वांगीण विकास से तात्पर्य यहॉ शारीरिक, मानसिक, नैतिक, आध्यात्मिक व सामाजिक विकास से है। योग जीवन जीने की कला है। योग एक ऐसा साधना विज्ञान है, जिसके द्वारा जन्म-जन्मो के संस्कार क्षीण हो जाते हैं। शारीरिक, एवं मानसिक निरोगता, स्वस्थता, व कुविचारों, कुसंस्कारों से मुक्ति मिलती है। सुसंस्कारिता, सुविचार के द्वारा अच्छे व्यक्तित्व का निर्माण होता है। जीवन उच्च व दिव्य बनता जाता हैं। आत्मदर्शन व आत्मसाक्षात्कार के द्वारा मोक्ष की प्राप्ति सम्भव है।
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